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सफलता के बावजूद कुछ लोग जश्न क्यों नहीं मनाते?

 

सफलता के बावजूद कुछ लोग जश्न क्यों नहीं मनाते?


हर व्यक्ति के लिए सफलता का एक अलग अर्थ है, कभी-कभी लोग सफलता का जश्न मनाते हैं, कभी-कभी वे ऐसा नहीं करते हैं और कभी-कभी वे जश्न नहीं मनाते हैं क्योंकि वे एक ज़ोरदार और स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं।


वर्ष 2008 में भारत ऑस्ट्रेलिया का दौरा कर रहा था, एक बहुत ही विवादास्पद टेस्ट श्रृंखला के बाद, (जो ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में 2-1 से समाप्त हुई ) यह मेजबान ऑस्ट्रेलिया, भारत और श्रीलंका की त्रिकोणीय श्रृंखला का समय था।

कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज़ के मैच में भारत का सामना ऑस्ट्रेलिया से हुआ था, पहले ऑस्ट्रेलिया बल्लेबाज़ी करते हुए 159 रन पर ढेर हो गई(उस समय कई ऑस्ट्रेलियाई सितारों के रिटायरमेंट के बाद भी उनके पास गिलक्रिस्ट, हेडन, पोंटिंग, हसी, साइमंड्स, क्लार्क ली, ब्रैकेन जैसे खिलाड़ी उपलब्ध थे) तब भी उनके खिलाफ जीतना एक बहुत बड़ी और बहुत दुर्लभ बात थी।

भारत एक समय में 102/5 रन पर था, जब भारतीय कप्तान धोनी क्रीज़ पर आए और रोहित शर्मा के साथ मिलकर टीम को जीत दिलाई हालांकि इससे पहले पृष्ठभूमि में कुछ और ही चल रहा था।


तब महज़ 10 रन जीत के लिए चाहिए थे , धोनी ने दस्ताने बदलने के लिए एक अनावश्यक ईशारा किया। अमूमन क्रिकेट में ऐसा तब होता है जब आपको ड्रेसिंग रूम से कोई संदेश भेजा गया हो लेकिन यहाँ बात उल्टी थी, धोनी ने ड्रेसिंग रूम और टीम के लिए एक संदेश भेजा था।


अपनी पुस्तक '***द धोनी टच'*** में पत्रकार भरत सुंदरसेन ने बताया कि कैसे धोनी ने अपनी टीम को जश्न मनाने से मना किया, उन्होंने रोहित को भी निर्देश दिया कि जब वो जीत के बाद औस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों से हाथ मिलाऐ तो बिना किसी उत्तेजना के संकेत के हाथ मिलाएं ।


सुंदरसेन ने अपनी पुस्तक में समझाया

>***"धोनी चाहते थे कि यह हार जितना संभव हो सके उतना ही तीखा लगे औस्ट्रेलिया को"***

यह भारतीय टीम द्वारा एक जोरदार और स्पष्ट संदेश था-

>***नहीं सर, आप तुक्के से नहीं हारे हो आपको कायदे से हमारी टीम ने हराया है, अब आगे फिर मिलेंगे और फिर हम आपको हराएंगे और अब आप यह आदत डाल लो हारने की'।***

और हाँ उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को हराया और 2008 कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज़ जीती भी।




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